चीन में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों को समाप्त करने वाली, तियानमेन स्क्वायर की खूनी कार्रवाई की 36वीं वर्षगांठ का चुपचाप गुजर जाना अधिकांश चीनी लोगों के लिए एक मामूली दिवस की तरह रहा। इसकी वजह सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का सख़्त रवैया है जो इसे इसी रूप में देखता आया है।

4 जून 2025 को बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर के आसपास सुरक्षा कड़ी थी, जहाँ 1989 में छात्रों के नेतृत्व में कई सप्ताह तक चले विरोध प्रदर्शनों ने सत्ता पक्ष को हिलाकर रख दिया था। चीन सरकार द्वारा सभी कार्यकर्ताओं की स्मृतियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। घटना पर ऑनलाइन चर्चा तक अत्यधिक नियंत्रित कर दी गई थी, जिसमें आलोचना को सेंसर करना भी शामिल रहा। लेकिन दुनिया के अन्य हिस्सों में, खास तौर पर हांगकांग और ताइवान में कार्यकर्ताओं ने हर साल की तरह इस दिन को मनाया। ताइपे के फ्रीडम स्क्वायर में मोमबत्ती जलाकर कई सौ लोग एकत्र हुए और इस दिन को याद किया गया। कनाडाई और जर्मन दूतावासों ने मुख्य सड़क के सामने बड़ी स्क्रीन पर एक जलती हुई मोमबत्ती की छवि प्रदर्शित की। बीजिंग स्थित ब्रिटिश और जर्मन दूतावासों ने भी चीनी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म वीबो पर वर्षगांठ मनाने के लिए वीडियो पोस्ट किए, जो कि बाद में उन्हें संभवतः सेंसर द्वारा हटा दिए गए। इसी संदर्भ में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्काे रुबियो की टिप्पणी को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान द्वारा जानबूझकर चीन की राजनीतिक प्रणाली और विकास पथ पर हमला कर उनके आंतरिक मामलों में गंभीर रूप से हस्तक्षेप करना कहा गया। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने इस वर्षगांठ का उपयोग उस द्वीप को स्थापित करने के लिए किया, जिसका नेतृत्व वे सत्तावाद के विरुद्ध लोकतंत्र की रक्षा करने की अग्रिम पंक्ति में करते हैं। एक फेसबुक पोस्ट में, उन्होंने ताइवान के बहुदलीय लोकतंत्र और चीन के एकदलीय शासन के बीच अंतर बताया। लाई ने लिखा, “अधिनायकवादी सरकारें अक्सर चुप रहना और इतिहास को भूल जाना चुनती हैं, जबकि लोकतांत्रिक समाज सच्चाई को बनाए रखना चुनते हैं और उन लोगों को भूलने से इनकार करते हैं जिन्होंने मानवाधिकारों के आदर्शों और उनके सपनों को अपनाने में योगदान दिया है।“

2020 के मध्य से ही सरकार द्वारा इस मानवहत्या कीस्मृति दिवसपर लगाया गया प्रतिबंध मुख्य भूमि चीन से लेकर हांगकांग तक फैल गया है। 2020 और 2021 में कोविड-19 के आधार पर वार्षिक तियानमेन नरसंहार सतर्कता पर प्रतिबंध लगाया। उसके बाद किसी किसी बहाने इस पर रोक लगाई जाती रही और कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर दिए गए। चीन के शोधकर्ता याकिउ वांग कहते है, चीन की सरकार ने तियानमेन नरसंहार के लिए कभी भी देश या विदेश में कोई कीमत नहीं चुकाई, बल्कि लाखों लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में रखने, नागरिक समाज के दमन और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और संस्थानों को कमजोर करने को बढ़ावा दिया।

प्रतीकात्मक रूप से चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है तियानमेन स्क्वायर

तियानमेन स्क्वायर बीजिंग के मध्य में स्थित है और 44 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। यह चीन का सबसे बड़ा शहरी चौराहा है और दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक चौराहों में से एक है। दोनों तरफ़ से स्मारकीय, साम्यवादी युग की इमारतों और दक्षिणी छोर पर माओत्से तुंग की समाधि के बीच स्थित इस स्क्वायर का 1949 तक कोई नाम था। माओ ज़ेडोंग ने इस जगह का इस्तेमाल पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के जन्म की घोषणा करने के लिए किया था और तब से यह चीन के आधुनिक विकास और शक्ति की छवि का प्रतीक रहा है।

निषिद्ध शहर की पारंपरिक चीनी शैली के विपरीत, तियानमेन स्क्वायर एक आधुनिक, औद्योगिक चेहरा पेश करता है जो एक दिलचस्प विरोधाभास बनाता है। तियानमेन चौक के हर तरफ शहर की सबसे प्रतिष्ठित संरचनाओं में से एक है। तियानमेन के दक्षिण में कियानमेन गेट है जो मिंग राजवंश के समय का है और बीजिंग में प्रवेश का मूल द्वार है। तियानमेन के पश्चिम में ग्रेट हॉल ऑफ पीपल है, जो नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (चीनी संसद) का बैठक स्थान है और कई विशेष राजनीतिक कार्यक्रमों का मेजबान है। पूर्व में चीन का राष्ट्रीय संग्रहालय है जिसमें चीन के व्यापक इतिहास की कई कलाकृतियां और सांस्कृतिक अवशेष हैं। उत्तर में फॉरबिडन सिटी है, जो शायद तियानमेन का सबसे प्रसिद्ध पड़ोसी है।

 इन सारी महत्पूर्ण धरोहरों के बावजूद तियानमेन स्क्वायर आज एक भयानक नरसंहार स्थल के रूप में याद किया जाता है।

विरोध प्रदर्शन की वजह और ये कैसे बढ़े?

यह बात अप्रैल 1989 की है जबकि वसंत माह से आरंभ हुए विरोध के स्वर, अभिव्यक्ति की आजादी और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग के साथ एक बड़े प्रदर्शन का रूप लेते चले गए।। एक प्रमुख राजनेता, हू याओबांग-जिन्हें दो साल पहले राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें पार्टी में शीर्ष पद से हटा दिया था और जिन्होंने कुछ आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों की बात पर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था-की मृत्यु से प्रदर्शनकारियों का स्वर और मुखरित हो गया। हू के अंतिम संस्कार के दिन, अभिव्यक्ति की अधिक स्वतंत्रता और कम सेंसरशिप की मांग करते हुए, हज़ारों लोग एकत्र होना आरंभ हो गए थे।

यह प्रदर्शन भ्रष्टाचार और मुद्रास्फीति का विरोध करने और माओ के बाद के युग में चीन को पहले से ही काफी हद तक बदलने वाले सुधारों पर आधारित व्यापक राजनीतिक और आर्थिक सुधारों का आह्वान करने का वाला एक मंच बन गया। इसी बीच सोवियत महासचिव मिखाइल गोर्बाचेव की 15 मई को होने वाली राजकीय यात्रा ने विरोध प्रदर्शनों को और भी तीव्र कर दिया। यहां तक की कुछ प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए भूख हड़ताल तक शुरू कर दी। राजकीय यात्रा को कवर करने के लिए पहुंचे विदेशी मीडिया का ध्यान राजकीय यात्रा के बजाय इन विरोध प्रदर्शनों पर केंद्रित हो गया, जिसने प्रदर्शनकारियों और उनकी मांगों के बारे में अंतरराष्ट्रीय - विशेष रूप से पश्चिमी - जागरूकता को बढ़ाना आरंभ कर दिया।

स्क्वायर में भीड़ छात्रों से बढ़कर चीनी समाज के व्यापक वर्ग तक पहुंच गई, जिसमें बीजिंग और उसके बाहर के मज़दूरों से लेकर आम नागरिक तक शामिल होने लगे। कथित तौर पर यह संख्या एक मिलियन से भी ज्यादा बताई गई। गोर्बाचेव की यात्रा ने 18 मई को उनके जाने तक चीनी अधिकारियों का ध्यान अपनी ओर बनाए रखा। 19 मई को, कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव झाओ ज़ियांग ने भूख हड़ताल खत्म करने की भावनात्मक अपील करने के लिए प्रदर्शनकारियों से दोबारा मुलाकात की। बात बनने पर चीनी नेतृत्व ने 20 मई को बीजिंग में मार्शल लॉ लागू कर दिया, लेकिन विरोध प्रदर्शनपर इसका कोई असर नहीं हुआ। वे जारी रहे।

3 और 4 जून की रात को, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने टैंकों के साथ चौक पर हमला किया, और भयानक मानवीय क्षति के साथ विरोध प्रदर्शनों को कुचल दिया। मारे गए लोगों की संख्या का अनुमान अलग-अलग है। चीनी सरकार ने दावा किया है कि 3,000 से अधिक लोग घायल हुए और 36 विश्वविद्यालय के छात्रों सहित 200 से अधिक लोग मारे गए। हालाँकि, पश्चिमी स्रोत आधिकारिक चीनी रिपोर्ट पर संदेह करते हैं और अक्सर सैकड़ों या यहाँ तक कि हज़ारों लोगों की मौत का हवाला देते हैं।  कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता कि कितने लोग मारे गए जून 1989 के अंत में, चीनी सरकार ने कहा कि 200 नागरिक और कई दर्जन सुरक्षाकर्मी मारे गए। अन्य अनुमानों के अनुसार यह संख्या सैकड़ों से लेकर कई हज़ार तक है। कुछ अनुमानों के अनुसार 1,000 से अधिक लोग मारे गए।

ब्रिटेन के दस्तावेजों से पता चला कि चीन में तत्कालीन ब्रिटिश राजदूत सर एलन डोनाल्ड के एक राजनयिक केबल में कहा गया था कि इस खूनी कारवाई में 10,000 लोग मारे गए थे। यह आंकड़ा चीन में तत्कालीन ब्रिटिश राजदूत सर एलन डोनाल्ड द्वारा भेजे गए एक गुप्त राजनयिक केबल में दिया गया था। दूत का कहना है कि मूल स्रोत चीन की स्टेट काउंसिल के एक सदस्य का मित्र था। उनके अनुसार स्रोत अतीत में विश्वसनीय रहा है और तथ्य को अटकलों और अफवाहों से अलग करने के लिए सावधान था। दूत के कथनानुसार छात्रों ने समझा कि उन्हें चौक छोड़ने के लिए एक घंटे का समय दिया गया था, लेकिन पाँच मिनट के बाद एपीसी ने हमला कर दिया और सैनिकों सहित सभी को कुचल दिया गया। एपीसी ने बार-बार शवों को कुचला और बुलडोजर द्वारा अवशेषों को एकत्र किया। अवशेषों को जला दिया गया या फिर नालियों में डाल दिया गया।

इस वीभत्स कांड के बाद अन्य चीनी शहरों में हुए इस तरह के विरोध प्रदर्शनों को जल्द ही दबा दिया गया और उनके नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

तियानमेन चौक की घटना के बाद की प्रतिक्रियाएं

तियानमेन नरसंहार के बाद, चीनी सरकार ने देश भर में दमनकारी कार्रवाई कई दिनों तक जारी रही और हजारों लोगों को क्रांति विरोधी और अन्य आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार किया गया, जिसमें आगजनी और सामाजिक व्यवस्था को बाधित करना शामिल था। सरकार ने नरसंहार के लिए कभी भी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं की या हत्याओं के लिए किसी भी अधिकारी को कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया। इसने घटनाओं की जांच नहीं की या मारे गए, घायल हुए, जबरन गायब हुए या कैद किए गए लोगों के बारे में डेटा जारी नहीं किया। तियानमेन मदर्स ने बीजिंग और अन्य शहरों में आंदोलन के दमन के दौरान मारे गए 202 लोगों का विवरण दर्ज किया।

तियानमेन चौक पर हुई घटनाओं की चर्चा चीन में आज भी बेहद संवेदनशील है। नरसंहार से संबंधित पोस्टों को सरकार द्वारा कड़े नियंत्रण के साथ नियमित रूप से इंटरनेट से हटा दिया जाता है। नरसंहार की स्मृतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के स्वरूप में 2022 में, डेनिश कलाकार जेन्स गैल्शिएट द्वारा बनाई गई ‘पिलर ऑफ शेम’ के रूप में जानी जाने वाली मूर्ति की प्रतिकृति को ताइपे में तोड़ दिया जाना अराजकता का ही प्रदर्शन है।  4 जून 1989 को मरने वाले लोगों की याद में बनाई गई मूल प्रतिमा 23 साल तक हांगकांग विश्वविद्यालय में प्रदर्शित रही, लेकिन उसे भी 2021 में विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा हटा दिया गया। इसीलिए, आज की युवा पीढ़ी को इस बारे में बहुत कम जानकारी रखती है कि उस वक्त क्या हुआ था। हालांकि ताइवान के प्रोफेसर वू लैंग-हुआंग, जो 1989 में सैनिकों के चौक पर पहुंचने के समय मौजूद थे, जो कुछ हुआ उसका दस्तावेजीकरण करने और संबंधित कलाकृतियाँ एकत्र करने में निरंतर प्रयासरत है। उनका कहना है कि यह केवल उस समय जो हुआ उसे याद करने के बारे में नहीं है, बल्कि आधुनिक हांगकांग और ताइवान के बारे में हमें जो सबक सिखाता है, यह उसके बारे में भी है। इस विरोध प्रदर्शन के आयोजकों में से एक का तो यह भी कहना है कि, कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं कि 1989 के विरोध प्रदर्शन के सालों बाद पैदा हुए लोग अभी भी क्यों इस बात की परवाह करते हैं। दरअसल यह स्मृति के बारे में है, जो अपने आप में प्रतिरोध का एक रूप है।

हांगकांग में जन्मे अमेरिकी विदेश सेवा अधिकारी एडवर्ड लू-जो 1989 के कुख्यात तियानमेन स्क्वायर हत्याकांड के समय ताइवान में सेवा कर रहे थे और फिर मार्शल लॉ की अवधि के दौरान मुख्य भूमि चीन में-ने ताइवान में, तियानमेन स्क्वायर की घटनाओं के बाद सदमे और निराशा की प्रतिक्रियाओं को स्वयं देखा। उनके कथनानुसार, उन्हें लगता था कि पिछले 30 सालों में चीजें बदल गई हैं, जहां ताइवान के कई लोग सांस्कृतिक और राजनीतिक और सामाजिक रूप से मुख्य भूमि से अलग महसूस करते हैं, लेकिन, उस समय, ऐसा लगा जैसे अधिकांश लोग अभी भी इस आम चीनी पहचान में निवेश कर रहे थे। वे चीनी कम्युनिस्टों के राजनीतिक विरोध में थे।

विश्व प्रतिक्रिया के तौर पर, तियानमेन नरसंहार के एक दिन बाद, कांग्रेस और अंतरराष्ट्रीय समाज के दबाव में, तत्कालीन अमेरीकी राष्ट्रपति जार्ज एच डब्ल्यू बुश ने चीन सरकार पर कई प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी, जैसे कि दोनों देशों के बीच हथियारों की बिक्री और सैन्य यात्राओं को निलंबित करना, संयुक्त राज्य अमेरिका में चीनी छात्रों के प्रवास के विस्तार के लिए आवेदनों की फिर से जांच करना और द्विपक्षीय संबंधों में अन्य मुद्दों की समीक्षा करना। 8 जून को, अमेरिकी विदेश विभाग ने अमेरिकी नागरिकों से चीन छोड़ने का आह्वान किया था। 20 तारीख को, बुश ने अमेरिकी सरकार को चीन के खिलाफ नए प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया, जिसमें चीनी सरकारी अधिकारियों के साथ सभी उच्च-स्तरीय संपर्कों को रोकना शामिल था, और घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से चीन को नए ऋण देने को स्थगित करने की मांग करेगा।

इस कांड के बाद पीड़ितों के रिश्तेदारों द्वारा गठित एक समूह, तियानमेन मदर्स ने सरकार से वार्षिक ऑनलाइन अपील की गई। 108 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित इस अपील में 4 जून, 1989 को जो कुछ हुआ, उसकी स्वतंत्र जांच की मांग की गई, जिसमें मरने वाले सभी लोगों की सूची भी शामिल थी। समूह ने परिवारों के लिए मुआवज़ा और मौतों के लिए ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ़ कानूनी मामला दर्ज करने की भी मांग की, लेकिन सरकार ने तियानमेन नरसंहार के लिए न्याय की अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मांगों को अनदेखा करना जारी रखा। नरसंहार के जवाब में अमेरिकी सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को पिछले कुछ वर्षों में कमजोर कर दिया गया या टाल दिया गया। ह्यूमन राइट्स वॉच के चीन शोधकर्ता याल्कुन उलुयोल के अनुसार, चीन सरकार ने कभी भी तियानमेन नरसंहार की जिम्मेदारी नहीं ली, पीड़ितों और उनके परिवारों को राहत देने की बात तो दूर की है। बीजिंग की जबरन भूलने की बीमारी ने चीन में सत्तावादी शासन को और गहरा कर दिया है, फिर भी इसने सच्चाई, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सम्मान की मांगों को खत्म नहीं किया है।

तियानमेन नरसंहार के बारे में सेंसरशिप और सेल्फ-सेंसरशिप हांगकांग में आम बात हो गई है। नवंबर 2024 में, हांगकांग के अधिकारियों ने एक लैम्पपोस्ट, FA8964 का लेबल बदल दिया, क्योंकि इसमें गलती से कार्रवाई की तारीख का संदर्भ था। दिसंबर 2024 में, हांगकांग की एयरलाइन कैथे पैसिफ़िक को अपने इनफ़्लाइट एंटरटेनमेंट सिस्टम में ऐसी सामग्री शामिल करने के लिए माफ़ी मांगनी पड़ी जिसमें तियानमेन नरसंहार का एक दृश्य दिखाया गया था। यू तो चीन के साम्यवादी शासकों ने तब से इस दमन को लेकर किसी भी सार्वजनिक उल्लेख को मिटाने की पूरी कोशिश की है और सेंसर ने सभी ऑनलाइन संदर्भों को हटा दिया है। यहां तक कि विदेशी मीडिया को 36 साल के निशान के कवरेज के बारे में भी चेतावनी दी है।

लेकिन बीजिंग हर सख़्त पहल के बावजूद, चीन और हांगकांग के अलावा, दुनिया भर में प्रवासी समूहों और गुमनाम सोशल मीडिया अकाउंट्स ने हाल के वर्षों में इस दमन की याद में सार्वजनिक चर्चाएँ, प्रदर्शनियाँ, सभाएँ और निबंध प्रकाशित करने को नहीं रोक सका। इस साल, 10 देशों के 40 शहरों में 77 कार्यक्रमों की योजना ने तियानमेन नरसंहार  की वर्षगांठ पर उस खूनी अध्याय के पृष्ठों पर अपनी श्रद्धाजंति अर्पित कर विरोध जता ही दिया।

Image Source: Ng Han Guan/The Associated Press

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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