जब डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया भर के व्यापारिक साझेदारों पर नए 10% टैरिफ से परे अतिरिक्त शुल्कों पर 90 दिनों की राहत दी, तब चीन को अलग-थलग कर चीनी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर 125% कर दिया, जिससे कुछ चीनी आयातों पर कुल अमेरिकी टैरिफ 145% हो गया। तब त्वरित और दृढ़ जवाबी उपायों के साथ बीजिंग ने भी अपना एक अलग तरीका निकाला। ट्रम्प के कदमों को एक ‘मज़ाक’ के रूप में खारिज कर दिया और अमेरिका के खिलाफ अपने टैरिफ को 125% तक बढ़ा दिया। इस पलटवार से भड़के ट्रम्प ने टैरिफ को 245% तक बढ़ाकर दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध को यकीनन मजाक बना के रख दिया। इस बचकाना वॉर में दोनों अर्थव्यवस्थाएँ अब एक चौतरफा, उच्च-तीव्रता वाले व्यापार गतिरोध में फंस गई हैं। चीन पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दे रहा है। अब वह अमेरिका को कम से कम इतना नुकसान तो पहुंचा ही देना चाहता है जितना वह चीन को अब तक पहुंचा चुका है। पर इसके साथ-साथ बीजिंग अपनी वैश्विक स्थिति का विस्तार करने की मंशा पर भी काम करना चाहता है।
इसी क्रम में चीन की चढ़ी त्यौरी ने अपनी एयरलाइनों को अमेरिका से बोइंग जेट की डिलीवरी न लेने और अमेरिकी कंपनियों से विमान से संबंधित उपकरणों और भागों की खरीद को रोकने का आदेश पारित कर दिया है। दूसरी ओर हांगकांग की डाक सेवा ने भी घोषणा कर है कि वह अब अमेरिका जाने वाले मेल को अब और संभाल नहीं सकेगा। हालांकि ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, चीन पर लगे टैरिफ ने अमेरिकी निर्मित विमान और भागों की कीमत को दोगुना से भी अधिक कर दिया होगा, जिससे लागत वहन करना उसके लिए असंभव हो सकता है। ब्लूमबर्ग ने एविएशन फ़्लाइट्स ग्रुप के डेटा का हवाला देते हुए बताया कि बोइंग, चीन की एयरलाइन कंपनियों को लगभग 10 मैक्स 737 विमान भेजने वाला था, जिसमें चाइना सदर्न एयरलाइंस, एयर चाइना और ज़ियामेन एयरलाइंस शामिल हैं। कंपनी के अनुसार पहली तिमाही के दौरान बोइंग पहले ही कुल 130 विमान डिलीवर कर चुका है, जिनमें 100 से ज्यादा 737 जेट शामिल हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध ने वैश्विक बाजारों और बड़े और छोटे व्यवसायों को हिलाकर रख दिया है, ऐसे में अनगिनत लोगों के मन में यह सवाल भी खड़ा हो रहा कि इन दोनों दिग्गजों में “पहले कौन झुकेगा?” चीन के जैसे को तैसे रवैए को देख कर और अमेरिकन जनता के दबाब के चलते ऐसा लगता है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ही लचीला रूख अख़्तियार करेगें। यूं भी गत दिनों चीनी टैरिफ तनाव को लेकर वह अब संभावित कमी करने का संकेत तो देने लगे है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट भी चीन के खिलाफ चल रहे टैरिफ प्रदर्शन को अस्थिर बताते हुए उम्मीद जता रहे कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध में धीमापन जल्द ही देखने को मिलेगा। वैसे तो अभी तक दोनों देशों के बीच औपचारिक बातचीत शुरू भी नहीं हुई है।
एक दूसरे के उत्पाद पर बहुत निर्भर करते है दोनों देश
दोनों देशों के बीच के 2024 के आयात-निर्यात पर नजर डाले तो अमेरिका से चीन को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की सबसे बड़ी श्रेणी सोयाबीन थी, जिसका उपयोग मुख्य रूप से चीन के अनुमानित 440 मिलियन सूअरों को खिलाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा अमेरिका चीन को दवाइयाँ और पेट्रोलियम भी भेजता है। दूसरी तरफ, चीन से अमेरिका को बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर और खिलौने भेजे गए। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ज़रूरी बैटरियों का भी बड़ी मात्रा में निर्यात किया गया। चीन से अमेरिका द्वारा आयात की जाने वाली सबसे बड़ी श्रेणी स्मार्टफोन है, जो कुल आयात का 9% है। इन स्मार्टफोन का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी एप्पल के लिए चीन से ही तैयार होकर आता है। चीन से आयातित ये सभी वस्तुएं पहले से ही अमेरिकियों के लिए काफी महंगी थीं। अब जबकि टैरिफ बढ़कर 125% हो गया है और कुछ उत्पादों के लिए तो 145% हो गया है तो खरीदार पर इसका असर छह गुना अधिक हो जाने की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है।
उधर चीन के प्रतिशोधात्मक टैरिफ के कारण चीन पर भी अमेरिका से आयातित वस्तुओं की कीमत का बोझ बढ़ेगा, जिससे अंततः चीनी उपभोक्ताओं को भी इसी तरह का नुकसान उठाना पड़ेगा। यही नहीं टैरिफ से इतर भी ये देश एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जैसे घातु। उद्योग के लिए तांबे और लिथियम से लेकर दुर्लभ पृथ्वी तक कई महत्वपूर्ण धातुओं को परिष्कृत करने में चीन की केंद्रीय भूमिका रही है। चीन दुनिया के 80% से अधिक गैलियम उत्पादन को नियंत्रित करता है, जो इसे वैश्विक बाजार में एक रणनीतिक खिलाड़ी बनाता है। बीजिंग इन धातुओं को अमेरिका तक पहुँचने से रोक सकता है। ऐसा उसने ‘जर्मेनियम और गैलियम’ नामक दो सामग्रियों के मामले में पहले ही कर चुका है। पारंपरिक इलेक्ट्रॉनिक्स से परे, गैलियम उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसका उपयोग पावर इलेक्ट्रॉनिक्स में तेजी से किया जा रहा है, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों में। जर्मेनियम, डोप्ड ऑप्टिकल फाइबर लंबी दूरी के डेटा ट्रांसमिशन के लिए आवश्यक हैं, जो हाई-स्पीड इंटरनेट और वैश्विक संचार प्रणालियों को सक्षम करते हैं जो आज की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आधार हैं। जर्मेनियम का उपयोग माइक्रोप्रोसेसर और सौर सेल बनाने में भी किया जाता है। इसका उपयोग अंधेरे में उपयोग किए जाने वाले दृष्टि संबंधी चश्मों में भी किया जाता है जो सेना के लिए अति आवश्यक पदार्थ हैं।
जहाँ तक अमेरिका का सवाल है, वह चीन पर जो बिडेन द्वारा शुरू की गई तकनीकी नाकाबंदी को और कड़ा करने का प्रयास कर सकता है, जिसके तहत वह चीन के लिए उन्नत माइक्रोचिप्स आयात करना कठिन बना सकता है, जो ए आई जैसे अनुप्रयोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, और जो वह अभी तक खुद नहीं बना सका है।
इन महाशक्तियों के कारण अन्य अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचने के आसार
देखा जाए तो दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक दूसरे के खिलाफ टैरिफ पर बढ़ोतरी की जवाबी लड़ाई व्यापारिक युद्ध के नजरिए से नवीनतम है। लेकिन दुनिया की इन दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच व्यापार युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों को तबाह कर दिया है और वैश्विक मंदी की आशंकाओं को हवा दी है। जबकि अन्य देश ट्रम्प के साथ बातचीत करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन चीन इस अमेरिकन हरकत को एकतरफा बदमाशी कहे जाने वाले कदम के खिलाफ मजबूती से खड़ा है और अंत तक इससे लड़ने की बात कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, अमेरिका और चीन मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में इतनी बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं, जो इस वर्ष लगभग 43ः है। यदि ये एक लंबे व्यापार युद्ध में शामिल होते हैं, तो वृद्धि धीमी होगी, या इन देशों में मदी की संभावना बढ़ जायेगी। अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी इन देशों की धीमी वैश्विक वृद्धि के रूप में नुकसान उठाना पड़ सकता है।। इससे वैश्विक निवेश प्रभावित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अन्य संभावित परिणामों का भी सामना करना पड़ सकता हैं। चीन दुनिया का सबसे बड़ा विनिर्माण राष्ट्र है और इस वक्त अपनी आबादी की घरेलू खपत से कहीं अधिक उत्पादन कर रहा है। यह पहले से ही लगभग $1 ट्रिलियन का माल अधिशेष चला रहा है, जिसका अर्थ है कि यह आयात की तुलना में दुनिया के बाकी हिस्सों में अधिक माल निर्यात कर रहा है।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में अमेरिका और चीन के बीच कुल माल व्यापार 582.4 बिलियन डॉलर था। कनाडा और मैक्सिको के बाद, चीन अमेरिका का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। चीन से अमेरिका का आयात कुल 438.9 बिलियन डॉलर रहा, जबकि इसके निर्यात में 143.5 बिलियन डॉलर का इजाफा हुआ। नतीजा यह है कि पिछले साल चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 295.4 बिलियन डॉलर रहा, जो किसी भी अन्य देश से अधिक है। एशिया पैसिफिक फाउंडेशन ऑफ़ कनाडा में अनुसंधान और रणनीति की उपाध्यक्ष वीना नादजीबुल्ला ने अल जजीरा से कहती है कि, 145 प्रतिशत टैरिफ़ की वजह से चीन के लिए भी अमेरिका को अपने उत्पाद बेचना असंभव हो जाएगा। जाहिर है बेहद बढ़ाए गए टैरिफ की वजह से दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर लागत असाधारण रूप से अधिक होगी।
पड़ोसी देशों के साथ साझा भविष्य बनाने का आह्वान करते चीनी नेता
खुद को दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में पेश करने की इच्छा रखने वाला चीन, “पारस्परिक” टैरिफ को लेकर वाशिंगटन के साथ बढ़ रहे तनाव को ध्यान में रखते हुए पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कवायद आरंभ कर चुका है। दरअसल राष्ट्रपति शी जिनपिंग अच्छी तरह से जानते है कि तीन दक्षिण-पूर्व एशियाई देश वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया कूटनीतिक कारणों से उसके लिए कितनी प्राथमिकता रखते है। इन देशों की यात्रा कर वह दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए अच्छे पड़ोसी, अच्छे दोस्त और साझा नियति वाली रेपुटेशन पर काम कर रहे है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों के प्रबंधन में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देकर और औद्योगिक और आपूर्ति श्रृंखला सहयोग को मजबूत करके आर्थिक एकीकरण को गहरा करने का आह्वान निश्चित तौर पर चीन अपनी गंभीर मंशा जाहिर कर रहा है। चीन दुनिया के सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाले देशों के समूह में से एक है, जिसकी ज़मीनी सीमा 14 देशों के साथ लगी है - यह एक ऐसा अंतर है जो इसे रूस के साथ भी साझा करता है, जबकि समुद्र पार उसे आठ पड़ोसी देशों का सामना करना पड़ता है, जिनमें अमेरिका के सहयोगी जापान, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस शामिल हैं। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, जहाँ चीन स्थित है, में विवादित दक्षिण चीन सागर शामिल है, जो एशियाई देश और अमेरिका के बीच भू-राजनीतिक शतरंज के खेल में तनाव का एक प्रमुख स्रोत बन गया है।
शी चीन और यूरोपीय संघ से, जो विश्व अर्थव्यवस्था के एक तिहाई से अधिक हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं, अंतर्राष्ट्रीय नियमों और व्यवस्था की रक्षा के लिए मिलकर काम करने का आह्वान कर रहे है। अपने पड़ोसियों के साथ रणनीतिक संबंधों को मजबूत करना चीन के कूटनीतिक एजेंडे में सबसे ऊपर है। वियतनाम और कंबोडिया ट्रम्प के पारस्परिक शुल्कों से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से थे, जिन पर क्रमशः 46% और 49% टैरिफ निर्धारित किए गए थे। दोनों देशों ने हाल के वर्षों में चीनी और अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों से निवेश में उछाल देखा है क्योंकि वे कम श्रम लागत का लाभ उठाने और अमेरिकी शुल्कों के खिलाफ बचाव के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से बाहर ले जाते हैं। अपने एक आधिकारिक बयान में चीनी नेता द्वारा अपने आस-पास के एशियाई देशों के साथ औद्योगिक और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर सहयोग को मजबूत करने का आह्वान करने के साथ-साथ ये दावा करना कि चीन के अपने पड़ोसियों के साथ संबंध आधुनिक समय के बाद से अपने सबसे अच्छे दौर में हैं और वे एक ऐसे महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर रहे हैं जिसमें क्षेत्रीय गतिशीलता और वैश्विक परिवर्तन आपस में गहराई से जुड़ रहे हैं-चीनी नेता की दूरगामी सोच का प्रदशर््न कर रहे है।
Author
Rekha Pankaj
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.