भू-रणनीतिक कारक ही हैं जो क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में, चीन के साथ भारत-पाकिस्तान के संबंधों को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाते आ रहे हैं। आपस में भूमि सीमा साझा करना, भारत और पाकिस्तान के लिए ही नहीं स्वंय चीन के लिए भी, अपनी पसंद या राजनीतिक कारणांे से अधिक, भौगोलिक वास्तविकता के नजरिए से बेहद अहम हो जाता हैं। 

चीन-भारत संबंधों का जिक्र करते हुए माओ ने कहा था कि चीन-भारत संबंध वास्तव में सुधार और विकास के महत्वपूर्ण चरण में हैं। चीन संबंधों को स्वस्थ और स्थिर ट्रैक पर आगे बढ़ाने के लिए भारतीय पक्ष के साथ काम करने के लिए तैयार हैं। यह भी कि वह भारत और पाकिस्तान संबंधों में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए हमेशा तैयार है। लेकिन इन बातों से दीगर, चीन पिछले कुछ भारत-पाकिस्तान संघर्षों के दौरान, पाकिस्तान की ही सहायता करता नजर आया है। हाल के भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान पाकिस्तान को चीनी समर्थन का सुझाव देने वाली रिपोर्टों के बीच, चीन द्वारा तटस्थ रुख और क्षेत्रीय शांति की वकालत किए जाने की बात दोहराई जाने के अतिरिक्त दोनों देशों के बीच के मतभेदों को सुलझाने हेतु माओ नीति के तहत समर्थन की बात फिर से दोहराई भर गई, जो सदैव की भांति एक रणनैतिक बयान भर रहा।   

भौगोलिक दृष्टि से देखें तो चीन की सीमाएँ भारत और पाकिस्तान दोनों से सीधी लगती हैं। भारत दक्षिण-पश्चिम में विवादित हिमालयी सीमा के साथ और पाकिस्तान पश्चिम में संकरे शिनजियांग गलियारे के माध्यम से चीन से सम्बद्ध है और यही भूगोल इन संबंधों को स्थायी बनाता है। ये भू-रणनीतिक कारक ही हैं जो क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में चीन के साथ भारत-पाकिस्तान संबंधों को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाते आ रहे हैं। आपस में भूमि सीमा साझा करना, भारत और पाकिस्तान के लिए ही नहीं स्वंय चीन के लिए भी, अपनी पसंद या राजनीतिक कारणांे से अधिक, भौगोलिक वास्तविकता के नजरिए बेहद अहम हो जाता हैं। पड़ोसी होने के बावजूद ये देश सीमा विवाद के चलते व्यापक सुरक्षा दुविधा का सामना भी कर रहे है। परमाणु-सशस्त्र देश-चीन, भारत और पाकिस्तान-अपने विरोधियों से संभावित खतरों के जवाब में अपने शस्त्रागार में वृद्धि को उचित ठहरा रहे हैं। ऐसे में यह दुविधा आपसी जोखिम को और बढ़ा देती है कि सीमा विवाद जैसी गहन समस्या परमाणु सीमा को पार कर सकते हैं।

भू-रणनीतिक मूल्यों की वजह से, अगर पाकिस्तान चीन के लिए रणनीतिक चोकपॉइंट पहुँच (ग्वादर), हिंद महासागर में क्षेत्रीय गहराई, भारत के विरुद्ध सैन्य सहयोग-ऊर्जा और व्यापार के लिए सुरक्षित मार्ग की वजह से मूल्यवान है तो भारत को वह सीमावर्ती प्रतिस्पर्धी, उभरती वैश्विक शक्ति और चीन के क्षेत्रीय समुद्री और भू-राजनीतिक पहलों के लिए संभावित ख़तरा मानता है। 

पाकिस्तान चीन का एक दीर्घकालिक सहयोगी

पाकिस्तान और चीन के बीच राजनयिक संबंध सिल्क रूट के समय से हैं, लेकिन पाकिस्तान द्वारा 1950 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को राजनयिक मान्यता देने के बाद से दोनों देशों ने 1951 में अपने द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों को औपचारिक रूप दिया। इसके बाद ही  पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस चीन के लिए सेवा संचालित करने वाली पहली एयरलाइन बन गई। 1960 का दशक इस मैत्री के एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक रहा, जिसमें 1963 में सीमा निर्धारण समझौता और 1959 से 1978 तक काराकोरम राजमार्ग (केकेएच) का निर्माण जैसी उल्लेखनीय घटनाएं भी हुईं। मैत्री राजमार्ग या दुनिया का आठवें आश्चर्य के रूप में विख्यात ’केकेएच’ ने व्यापार और पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया। 2006 में इसका उन्नयन किया गया और इसे विकासशील बंदरगाह शहर ग्वादर तक विस्तारित किया गया, जिससे आर्थिक गतिविधियों और भारी वाहनों की आवाजाही में सुविधा हुई। उच्च स्तरीय यात्राओं के दौरान, चीन और पाकिस्तान ’ग्वादर’ और ’काश्गर’ के बीच एक आर्थिक गलियारा बनाने पर सहमत हुए। ये ऐतिहासिक उपलब्धियां चीन और पाकिस्तान के बीच स्थायी और मजबूत राजनयिक और राजनीतिक संबंधों को रेखांकित करती हैं। इसके अलावा इन संबंधों के गहराने की एक वजह, 2005 में भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर भी रही। 

पिछले साढ़े सात दशकों में चीन-पाक संबंध विकसित होते चले गए और ये अन्योन्याश्रित संबंध 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के शुभारंभ के बाद से और मजबूत हो गए। सीपीईसी प्रमुख परियोजना थी और जो नए सिरे से चीन-पाकिस्तान भू-आर्थिक-सह-रणनीतिक सहजीवन की अभिव्यक्ति थी। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के एक प्रमुख घटक के रूप में, सीपीईसी का उद्देश्य चीन के बुनियादी ढाँचे के संपर्क को बढ़ावा देना और पाकिस्तान के वित्तीय ठहराव और ऊर्जा की कमी को दूर करना था। इस रणनीतिक अनिवार्यता को बीजिंग के सतत कूटनीतिक और आर्थिक प्रयासों द्वारा रेखांकित किया गया, जिसका उद्देश्य बीआरआई ढांचे के भीतर इस्लामाबाद के एकीकरण को संस्थागत बनाना था। चीन के लिए, सीपीईसी उसकी भू-रणनीतिक बाधाओं, विशेष रूप से मलक्का दुविधा के लिए एक रणनीतिक विकल्प प्रदान करता है, साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी उपस्थिति को भी बढ़ाता है। पाकिस्तान इसे आर्थिक पुनरोद्धार और बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण के अवसर के रूप में देखता है। 

दोनों देशों के बीच हालिया जुड़ाव उनकी साझेदारी के विरोधाभास को रेखांकित करता है। साझेदारी की छत्रछाया में, चीन ने पाकिस्तान के आर्थिक, बुनियादी ढाँचे, ऊर्जा और सुरक्षा क्षेत्रों में गहरी पैठ बना ली है, जिससे पाकिस्तान के पास स्वतंत्र विकल्प चुनने की सीमित गुंजाइश रह गई है। द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला 65 अरब डॉलर का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) है, जो बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में चीन के 1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश का एक बड़ा हिस्सा है। यही नहीं, पाकिस्तान के लगभग 80ः सैन्य उपकरणों की आपूर्ति चीन करता है, जिनमें जे एफ-17 लड़ाकू विमान, पनडुब्बियाँ और मिसाइल प्रणालियाँ शामिल हैं, और जे एफ-17 थंडर और के-8 प्रशिक्षक जैसे उन्नत प्लेटफ़ॉर्म का सह-विकास भी करता है। हाल ही में हुए भारत-पाकिस्तान संघर्ष में पाकिस्तानी सेना द्वारा चीनी जे-10 जेट और पीएल-15 ई मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया, जिससे वास्तविक युद्ध में उनकी क्षमता की पुष्टि होती है। भारत का आरोप है कि चीन ने पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव के दौरान लाइव इनपुट साझा किए थे- हालाँकि दोनों ही देश आधिकारिक तौर पर इस बात से इनकार करते हैं।

चीन के लिए भारत, परस्पर निर्भरता और प्रतिस्पर्धा वाला पड़ोसी

भारत एशिया में एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति और एक रणनीतिक प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर रहा है और चीन, अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी और ’क्वाड’ जैसे मंचों में उसकी भागीदारी को लेकर चिंतित रहता है। इन दोनों के बीच साझा हिमालय और सीमा विवाद एक बड़ी समस्या है। दोनों देश लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक एक विवादित सीमा साझा करते हैं, जो आपसी संघर्षों और निरंतर अविश्वास से अब तक प्रभावित है। इसका मूल कारण अस्पष्ट, 3,440 किमी (2,100 मील) लंबी वह विवादित सीमा है जो नदियों, झीलों और बर्फ़ की चोटियाँ होने के कारण रेखा बदल सकती है, जिससे कई जगहों पर सैनिक आमने-सामने आ सकते हैं और टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।

दोनों सरकारों ने 1988 में तनाव कम करने की कोशिश की और सीमा मुद्दे को अपने समग्र द्विपक्षीय संबंधों से अलग करने और इसके राजनीतिक समाधान की दिशा में काम करने पर सहमति जताई। लेकिन 2000 के दशक के उत्तरार्ध में जैसे-जैसे चीन का आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा बढ़ी, बीजिंग ने इस मुद्दे पर अपना कड़ा रूख अपनाना शुरू कर दिया। कई वर्षों बाद पहली बार हुई भीषण लड़ाई ने चीन-भारत संबंधों को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया। हालांकि भारी तनाव और यदा-कदा होने वाले झगड़ों के बावजूद, दोनों देशों ने शांति बनाए रखने की दिशा में प्रगति भी की। लेकिन सैनिकों के बीच शत्रुतापूर्ण मुठभेड़ों में भी तेजी आई। आपसी संदेह के कारण 2013, 2014 और 2017 में सीमा पर घटनाएँ फिर से उभर आईं। 2017 में डोकलाम में 73 दिनों तक चले गतिरोध ने दोनों देशों के बीच की कड़़वाहट को इस कदर बढ़ा दिया था कि भारत और चीन अपनी साझा हिमालयी सीमा पर गश्त करने के लिए एक लंबे अंतराल के बाद समझौते पर पहुँच सके। सीमा समझौते पर मनमुटाव दूर करने की बात भी दोनों पक्षों के राजनयिक और सैन्य वार्ताकारों के बीच हफ्तों की गहन बातचीत के बाद तय हुआ। दोनों पक्ष सीमा को लेकर प्रासंगिक मामले पर एक समाधान पर पहुँचे। लेकिन ‘सलामी-स्लाइसिंग’ रणनीति के लिए चर्चित चीन, समझौते तो सहयोग की नीति के रूप में करता है, अपने दावों को क्रमिक रूप से ही आगे बढ़ाता है।

दूसरे, इन दोनों के बीच रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता एक बड़ा मामला है। ये दोनों ही, दो महाद्वीपीय शक्तियों के रूप में, दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इन दोनों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा कई क्षेत्रों में प्रकट होती है। परमाणु हथियारों और विशाल जनसंख्या वाली उभरती शक्तियों और बहुध्रुवीयता की साझा महत्वाकांक्षा के बावजूद, भारत और चीन में बहुत कुछ समान होने के बावजूद, ये देश एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से ही देखते आ रहे हैं। इस संदेह ने दोनों देशों को एक-दूसरे के प्रभाव को कम करने और दक्षिण एशिया तथा हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय रणनीतिक हित के नए क्षेत्रों में विस्तार करने के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित किया है। चीन द्वारा जिबूती में सैन्य अड्डा स्थापित करने तथा श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा चीनी सैन्य निगरानी जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा करने की अनुमति देने से ये चिंताएं और बढ़ गई। चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत को प्रतिस्पर्धा में डाल दिया है, जिससे उसे भी अपनी विदेश नीति और क्षेत्र में अपनी सक्रियता पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उसने दक्षिण एशिया में ’पड़ोसी पहले’ नीति को लागू करके ऐसा किया है। इस नीति को ’एक्ट ईस्ट’ नीति का भी समर्थन प्राप्त है, जिसके तहत भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों और शेष एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है।

भारत की हिंद-प्रशांत साझेदारी (क्वाड, अमेरिका, जापान) चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व को चुनौती देती है। पाकिस्तान के माध्यम से अप्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा तीसरी समस्या है। पाकिस्तान के साथ चीन के गहरे संबंध भारत पर दबाव बढ़ाते हैं, विशेषकर कश्मीर से जुड़े क्षेत्रों और हिंद महासागर में, सीपीईसी के ग्वादर और नौसैनिक संभावनाओं के माध्यम से। भारत के साथ तनाव के बीच चीन अक्सर सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान की वायु सेना की संचालन प्रभावशीलता की प्रशंसा करता है जो स्पष्टतः दोनों के बीच रणनीतिक सामरिक साठगांठ को दर्शाता है। भारत के लिए क्षेत्रीय पुनर्गठन की चिंताएँ एक अलग मसला है। भारत के सीडीएस ने एक उभरते हुए चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश अक्ष की चेतावनी दी है जो भारत के सुरक्षा संतुलन के लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा है।

निष्कर्ष

निश्चित तौर पर भौगोलिक वास्तविकता तो ये ही रहेगी कि भारत और पाकिस्तान हमेशा चीन के पड़ोसी रहेंगे और चीन इनका। रणनैतिक तौर पर, पाकिस्तान हिंद महासागर और समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में अगर चीन के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है तो भारत रणनीतिक प्रतिस्पर्धी और क्षेत्रीय संतुलनकर्ता, दोनों ही रूप में कार्य करता है। निःसंदेह, इनकी त्रिकोणीय गतिशीलता दक्षिण एशिया के भविष्य की सुरक्षा और शक्ति संतुलन के लिए केंद्रीय भूमिका में रहेगी, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

 Image Credit: Reuters

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

Subscribe now to our newsletter !

Get a daily dose of local and national news from China, top trends in Chinese social media and what it means for India and the region at large.

Please enter your name.
Looks good.
Please enter a valid email address.
Looks good.
Please accept the terms to continue.