चीन के नवीनतम और सबसे उन्नत विमानवाहक पोत फ़ुज़ियान ने गत सप्ताह आधिकारिक तौर पर सेवा में प्रवेश किया, जिसका कमीशन समारोह 5 नवंबर को हैनान द्वीप के ’सान्या’ स्थित नौसैनिक बंदरगाह पर, देश के नेता शी जिनपिंग की देख-रेख में आयोजित एक समारोह में हुआ। स्वतंत्र रूप से डिजाइन और निर्मित विमानवाहक पोत फ़ुज़ियान चीन की तेजी से विस्तार कर रही नौसेना का तीसरा पोत है, जो जहाजों की संख्या के हिसाब से पहले से ही दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है। चीन के पहले दो पोत, लियाओनिंग और शांदोंग, जिन्हें 2012 और 2019 में कमीशन किया गया था, सोवियत ब्लूप्रिंट पर बहुत अधिक निर्भर थे।
फ़ुज़ियान मई 2024 से समुद्री परीक्षण कर रहा है, और इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि फिक्स्ड-विंग उड़ान संचालन चल रहा है। इस वर्ष अगस्त में आधिकारिक तस्वीरों में जे-15 को विमानवाहक पोत के डेक पर तथा उसके ऊपर निचले स्तर पर उड़ते हुए दिखाया गया था। हालांकि, उस समय इस बात का कोई साफ़ संकेत नहीं था कि जे-15 ने असल में फ़ुजियान से टेक-ऑफ किया था और/या उस पर लैंड किया था।
दरअसल बीजिंग के लिए ये जहाज, सैन्य उपकरण से कहीं अधिक, राजनीतिक शक्ति का प्रतीक हैं। ऐसा लगता है शी जिनपिंग चीन को वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए नौसैनिक क्षमता विकास को प्राथमिकता दे रहे है। पारंपरिक जल क्षेत्र से परे अपने वाहकों की संयुक्त तैनाती की योजना बनाकर, चीन प्रशांत क्षेत्र में सैन्य संतुलन को प्रभावित करने की अपनी महत्वाकांक्षा का संकेत दे रहा है। यह वाशिंगटन और उसके एशियाई सहयोगियों के साथ तनाव बढ़ने के जोखिम पर भी, अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से परे पावर दिखाने के साधनों से खुद को लैस करने के अपने संकल्प की भी पुष्टि करता है।
फुजियान पोत विमान की खासियत
चीन का पहला पूर्णतः घरेलू विमानवाहक पोत ’फ़ुज़ियान’ विशुद्ध रूप से स्की-जंप रैंप के बजाय विद्युत चुम्बकीय विमान प्रक्षेपण प्रणाली (ईएमएएलएस) का उपयोग करता है, जिससे भारी और अधिक उन्नत विमानों को इससे संचालित किया जा सकता है।
अपने बढ़ते एयर-विंग (जे-35 जैसेः स्टील्थ फाइटर, के जे-600 जैसे एईडब्ल्यूएंडसी एयरक्राफ्ट) के साथ, यह कैरियर चीन को ज़्यादा पावर प्रोजेक्शन कैपेबिलिटी देता है।नए जहाज की उन्नत विशेषताओं में विद्युत चुम्बकीय प्रक्षेपण प्रणाली शामिल है, जो विमान और जहाज पर कम दबाव डालती है, तथा गति पर अधिक सटीक नियंत्रण की अनुमति देती है। यह अधिकांश अमेरिकी विमानवाहकों पर प्रयुक्त भाप प्रणाली की तुलना में अधिक व्यापक श्रेणी के विमानों को प्रक्षेपित कर सकता है। यह पोत, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के आधुनिकीकरण और सुधार के लिए शी जिनपिंग के दीर्घकालिक प्रयासों का सबसे प्रमुख संकेत है और यह पुराने सोवियत डिजाइन और निर्मित ’लिओनिंग’ तथा सोवियत डिजाइन लेकिन चीन निर्मित ’शांदोंग’ के साथ सक्रिय सेवा में शामिल हो गया है। चीन के पास अब विश्व में दूसरे सबसे अधिक विमानन कंपनियां हैं, जो ब्रिटेन, भारत और इटली से आगे है - जिनके पास दो-दो विमानन कंपनियां हैं - लेकिन फिर भी वह अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अमेरिका से अभी भी काफी पीछे है, जिसके पास 11 विमानन कंपनियां हैं।
जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है, फ़ुज़ियान के विद्युत चुम्बकीय ’कैटापल्ट’, जिन्हें विद्युत चुम्बकीय विमान प्रक्षेपण प्रणाली (ईएमएएलएस) भी कहा जाता है, इस वाहक के डिजाइन की महत्वपूर्ण विशेषता है। वर्तमान में विश्व स्तर पर ’ईएमएएलएस’ के साथ सेवा में केवल एक अन्य फ्लैटटॉप है, अमेरिकी नौसेना का यूएसएस गेराल्ड आर फोर्ड। सिद्धांत रूप में, जब उड़ान उत्पादन दरों की बात आती है तो ’ईएमएएलएस’ भाप की तुलना में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। विद्युत चुंबकीय कैटापल्ट द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले विमान पर लगाए जाने वाले बल की मात्रा को भी अधिक सूक्ष्मता से समायोजित किया जा सकता है, जिससे उनके द्वारा नियत्रिंत किए जा सकने वाले प्रकारों की सीमा बढ़ जाती है, इससे सामान्य टूट-फूट को कम करने में मदद मिलती है, तथा अतिरिक्त सुरक्षा मार्जिन भी मिलता है। छोटे और अधिक नाजुक डिजाइनों को प्रक्षेपित करने की ‘ईएमएएलएस’ की क्षमता को भविष्य में वाहक-आधारित ड्रोन परिचालनों के लिए द्वार खोलने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे पीएलए बहुत सक्रियता से आगे बढ़ा रहा है।
पड़ोसी देशों के लिए चुनौती
यद्यपि चीन सार्वजनिक रूप से कह रहा है कि इसका उद्देश्य किसी विशिष्ट राष्ट्र को निशाना बनाना नहीं है। उदाहरण के लिए, चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि वाहक के मिशन “अंतर्राष्ट्रीय कानून और अन्य नौसेनाओं द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्य प्रथा के अनुरूप हैं... किसी विशिष्ट राष्ट्र या उद्देश्य पर लक्षित नहीं हैं।“ फिर भी तथ्य यह है कि ताइवान के निकट तैनाती से ताइवान की सुरक्षा योजना पर दबाव और रणनीतिक जोखिम बढ़ता है।
यह वाहक क्षमता ताइवान के आसपास समुद्री नाकाबंदी या बलपूर्वक कार्रवाई करने की चीन की क्षमता को मज़बूत करती है। विश्लेषकों का कहना है कि विमानवाहक पोत आसपास के समुद्रों पर नियंत्रण करने की चीन की क्षमता को बढ़ाते हैं और पहुंच मार्गों के लिए खतरा पैदा करते हैं। फिर भी, चीनी विमानवाहक पोत ताइवान पर नाकाबंदी लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। टोक्यो स्थित नेशनल ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज के प्रोफेसर नारुशिगे मिचिशिता बताते हैं कि इन जहाजों से व्यापक समुद्री निगरानी संभव होगी तथा सैन्य और वाणिज्यिक दोनों प्रकार के जहाजों पर दबाव डाला जा सकेगा। विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि ताइवान पर सीधे संघर्ष की स्थिति में, चीन के मुख्य भूमि स्थित हवाई अड्डे अधिक निर्णायक होंगे, क्योंकि यह द्वीप चीनी तट से निकटता रखता है।
ये बात सर्व विदित है कि चीन लगभग पूरे साउथ चाइना सी पर अपना दावा करता आ रहा है; इस इलाके में कैरियर तैनात करने से चीन को इन दावों को मज़बूती से पेश करने, मौजूदगी वाले ऑपरेशन करने और विरोधी दावेदारों (वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई) या बाहरी नौसेनाओं को रोकने के लिए ज्यादा ताकतवर हथियार मिलते हैं। समुद्री विशेषज्ञ और पूर्व संयुक्त राज्य वायु सेना कर्नल रे पॉवेल ने फिलीपींस के पूर्व में चीन के दो विमान वाहकों की “एक साथ तैनाती” को एक “ऐतिहासिक” क्षण बताया। उनके अनुसार चीन 2035 तक विश्व स्तरीय नौसेना रखने की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षा को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
उदाहरण के लिए, विवादित ’स्कारबोरो शोल’ के आसपास चीनी और फिलीपीनी जहाजों के बीच टकराव के बाद फुजियान को दक्षिण चीन सागर में भेजा गया था। पिछले कुछ महीनों में दोनों तरफ के नौसैनिक जहाजों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ गई हैं। हालांकि जहाजों के टकराव के आरोपों के बाद, चीनी रक्षा मंत्रालय ने ’फ़ुज़ियान’ एयरक्राफ्ट कैरियर की तैनाती की घोषणा करते हुए कहा कि यह टेस्टिंग और ट्रेनिंग के लिए है। दरअसल, अमेरिका के समर्थन से फिलीपींस, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के एक न्यायाधिकरण द्वारा 2016 में दिए गए फैसले के आधार पर दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा पेश करने की कोशिश कर रहा है, जिसमें उसके अधिकारों का समर्थन किया गया है। चीन, जिसने ट्रिब्यूनल का बहिष्कार किया था, ने इसके नतीजों को खारिज कर दिया।
जापान पहले ही अपने दक्षिण-पश्चिमी तटों से लेकर प्रशांत महासागर तक के विस्तृत क्षेत्रों में चीन की सैन्य गतिविधियों में तेजी लाने के प्रति कड़ी चेतावनी दे चुका है। जापानी रक्षा मंत्रालय की हालिया जारी वार्षिक सैन्य रिपोर्ट में कहा कि रूस के साथ चीन के बढ़ते संयुक्त अभियान, ताइवान के आसपास बढ़ते तनाव और उत्तर कोरिया से आने वाले खतरों के साथ-साथ जापान के लिए भी गंभीर सुरक्षा चिंताएं पैदा कर रहे हैं। 534 पृष्ठों की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशांत क्षेत्र में चीनी युद्धपोतों की प्रगति लगातार बढ़ी है, तथा पिछले तीन वर्षों में दक्षिण-पश्चिमी जापान से गुजरने वाले उनके जहाजों की आवृत्ति तीन गुना बढ़ गई है, जिसमें ताइवान और उसके पड़ोसी जापानी द्वीप ’योनागुनी’ के बीच का जलक्षेत्र भी शामिल है।
चीनी विमानवाहक समूहों के जापानी ’एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन’ (ईईजेड) या सुदूर जापानी द्वीपों के निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रवेश करने का अर्थ है कि जापान को निगरानी, समुद्री क्षेत्र जागरूकता और आइलैंड-डिफेंस रणनीतियों को बढ़ाना होगा। जापान के लिए इसका अर्थ यह है कि चीन के विमानवाहक पोत केवल ताइवान/दक्षिण चीन सागर का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि एक व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा चिंता का विषय हैं।
भारत इस खतरे से इतर नहीं
चीन के कैरियर और ’कैरियर स्ट्राइक ग्रुप’ पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित हैं, वहीं बीजिंग की हिंद महासागर में महत्वाकांक्षाएँ छुपी नहीं हैं। फ़ुज़ियान का जलावतरण (कमीशनिंग) महासागर क्षेत्र में और गहराई तक अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के चीन के इरादे का संकेत देता है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि भविष्य में ’फुजियान’ हिंद महासागर क्षेत्र में भी सक्रिय हो सकता है, जो चीन की ’स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का हिस्सा है। जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देश भी इस कदम को अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। इस कदम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदल सकता है। भारत की ताकत और जवाबी तैयारी देखी जाए तो भारत वर्तमान में दो वाहक, आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत, का संचालन करता है और क्वाड देशों (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) के साथ अपनी साझेेदारी से मजबूत स्थिति में है लेकिन चीन की शक्ति संतुलन के मुकाबले इस स्थिति से संतुष्ट होकर बैठ जाना भारी गलती हो सकती है। चीन भारत के लिए बेहतर व्यापारिक मित्र हो सकता है पर रणनैतिक मामलों में भरोसेमंद नहीं कहा जा सकता। कह सकते है कि भारत के लिए, जो अपने समुद्री क्षेत्र और समुद्री संचार मार्गों (एसएलओसी को चीनी नौसेना की मौजूदगी से प्रभावित होते हुए देखता है, कैरियर डेवलपमेंट एक स्ट्रेटेजिक संकेत है जिस पर नज़र रखने की ज़रूरत है।
भविष्य पर नजर रखने की आवश्यकता
अक्टूबर माह में प्रकाशित एक रिर्पोट ने इस बात का जिक्र किया है कि चीन कथित तौर पर चौथे विमानवाहक पोत पर काम कर रहा है, जो संभवतः परमाणु ऊर्जा से संचालित होगा, जिससे उसकी पहुंच और परिचालन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। हांगकांग के एक अखबार को मिली सैटेलाइट तस्वीरों में कथित तौर पर लियाओनिंग प्रांत के डालियान में एक बड़े शिपयार्ड में नए कैरियर का ढांचा बनता हुआ दिख रहा है, जिससे पता चल रहा था है कि बीजिंग का नौसैनिक विस्तार तेज़ी से जारी है। निश्चित तौर पर जैसे-जैसे चीन के विमानवाहक पोत अधिक सक्षम और संख्या में बढ़ते जाएंगे (कुछ विश्लेषकों का तो अनुमान है कि 2040 तक 6 विमानवाहक पोत हो जाएंगे) वैसे-वैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक शक्ति का संतुलन और अधिक बदलता जाएगा, विशेष रूप से प्रथम और द्वितीय द्वीप श्रृंखलाओं के आसपास और हिंद महासागर में।
पड़ोसी देश संभवतः गठबंधनों और साझेदारियों को मजबूत करने के साथ-साथ एंटी-कैरियर, मिसाइल-रक्षा और समुद्री निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने में तेजी लाएंगे (उदाहरण के लिए, अमेरिका-जापान, भारत-अमेरिका, फिलीपींस-अमेरिका)। कूटनीतिक और रणनीतिक निहितार्थ के नजरिए से दक्षिण चीन सागर जैसे क्षेत्र अधिक विवादित हो सकते हैं, और ग्रे-ज़ोन संचालन (नौसैनिक गश्त, द्वीप-निर्माण, वाहक उपस्थिति) बढ़ सकते हैं। इस तरह से देखा जाए तो ’फ़ुज़ियान’ (और भविष्य के वाहकों) का हालिया कमीशन, निरंतर शक्ति-प्रक्षेपण की ओर बदलाव का प्रतीक है।
चीन के ’फुजियान’ विमानवाहक पोत का जलावतरण और तैनाती, तथा पीएलएएन की विकसित होती वाहक-हमला क्षमता, उसके पड़ोसियों के लिए बहुआयामी चुनौती प्रस्तुत करती है। इससे ताइवान जलडमरूमध्य में तो जोखिम बढ़ता ही है, जापान और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र पर भी दबाव बढ़ता है। फिर ये भारत और हिंद महासागर के लिए कम चिंता का विषय नहीं है, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के नौसैनिक संतुलन में व्यापक बदलाव में योगदान की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इन सबसे इतर दक्षिण चीन सागर में चीन की स्थिति और भी मजबूत होती चली जाती है। हालांकि चीन का दावा कि उसके विमानवाहक मिशन खतरे से मुक्त हैं, रणनीतिक निहितार्थो की स्पष्टता और उसकी महत्ता को कम नहीं करता। इसलिए भी चीन के पडोसी देशों को पलक झपकने की भी नौबत नहीं आने देनी होगी।
Author
Rekha Pankaj
Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.