सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में, चीनी सरकार ने दक्षिण चीन सागर में एक बेहद विवादित रीफ़, स्कारबोरो शोल, पर एक राष्ट्रीय प्रकृति रिजर्व स्थापित करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी देकर अपने प्रतिद्वंद्वी दावेदार फिलीपींस के साथ एक नया वाकयुद्ध छेड़ दिया है।

अगस्त महीने में फिलीपींस तटरक्षक बल द्वारा जारी किए गए एक वीडियो में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी का जहाज ‘गुइलिन’ (एक 7,500 टन का,टाइप 052डी गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक) चीन तटरक्षक बल (सीसीजी) के जहाज 3104 से टकराता हुआ दिखाई देता है, जबकि ये दोनों जहाज बहुत छोटे बीआरपी सुलुआन फिलीपींस गश्ती जहाज का पीछा कर रहे थे। फिलीपीन तटरक्षक बल द्वारा जारी इस नाटकीय फुटेज में वह क्षण दिखाया गया है जब टक्कर हुई, जिससे चीन तटरक्षक बल के जहाज के अगले हिस्से का एक प्रमुख हिस्सा गायब हो गया। दो हजार टन वजनी सैन्य जहाजों की इस टक्कर को विश्लेषक फिलहाल ‘भाग्यशाली’ कह पाना भी आसान नहीं समझ रहे। विश्लेषक तो इस टक्कर को चीनी सेना के लिए एक कलंक मान रहे है जो और भी बदतर स्थिति में बदल सकती थी, खासकर इसलिए भी क्योंकि फिलीपींस संयुक्त राज्य अमेरिका का एक पारस्परिक रक्षा संधि सहयोगी है। घटना के वीडियो की समीक्षा करने के बाद, विश्लेषक कार्ल शूस्टर, जो कि पूर्व अमेरिकी नौसेना कप्तान रहे है, का कहना है कि चीनी जहाज ‘फिलीपीन कटर’ को अपने बीच फंसाने की कोशिश कर रहे थे, जिससे वह अपने इंजन के इनटेक में पानी की बौछार को बहुत करीब से झेलने के लिए मजबूर हो जाए । जाहिर है इससे (चीनी) जहाजों में से एक को उससे टकराना ही था और उनका मकसद भी , उसके पिछले हिस्से पर वार करना या उसे अन्यथा पंगु बना देना था।

वैसे तो यह घटना कोई नई नहीं। चीनी तटरक्षक जहाजों ने 2023 से ही फिलीपींस के पुनः आपूर्ति अभियानों को परेशान करने के लिए खतरनाक हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए थे, जाहिर है इससे दोनों के बीच की झड़पों ने भी गति पकड़ ली। अब ये टकराव आम होते जा रहे हैं। चीनी तटरक्षक बल अक्सर फिलीपींस के जहाजों पर सैन्य-ग्रेड लेज़र का इस्तेमाल कर बार-बार पानी की बौछारें करता हैं और इस तरह की अमान्य गतिविधियों को बीजिंग की मान्यता है क्योंकि उसका मानना है कि उसके जहाज दक्षिण चीन सागर में उसके संप्रभु क्षेत्र के दावे की रक्षा ही कर रहे है। 

सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में, चीनी सरकार ने दक्षिण चीन सागर में एक बेहद विवादित रीफ़, ‘स्कारबोरो शोल’, पर एक राष्ट्रीय प्रकृति रिजर्व स्थापित करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे देकर अपने प्रतिद्वंद्वी दावेदार फिलीपींस के साथ एक नया वाकयुद्ध छेड़ दिया है। चीन के राष्ट्रीय वानिकी और चरागाह प्रशासन के अनुसार, यह रिजर्व ‘स्कारबोरो शोल’ के चीनी नाम, हुआंगयान द्वीप पर 3,500 हेक्टेयर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला होगा, जहाँ मुख्य संरक्षण लक्ष्य प्रवाल भित्तियों का पारिस्थितिकी तंत्र होगा। 

फिलीपींस से 200 किमी (124 मील) दूर स्थित, ‘स्कारबोरो शोल’ फिलीपींस के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में आता है और लंबे समय से बीजिंग और मनीला के बीच एक टकराव का केंद्र रहा है। चट्टानों और चट्टानों की यह त्रिकोणीय श्रृंखला अपनी रणनीतिक स्थिति, प्रचुर मात्रा में मछली भंडार और तूफानों के दौरान नावों के लिए एक अभयारण्य के रूप में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्ध है। चीन ने 2012 में फिलीपींस की नौसेना के साथ लंबे गतिरोध के बाद अपने सुदूर दक्षिणी प्रांत हैनान से 870 किलोमीटर (540 मील) दूर स्थित निर्जन एटोल पर कब्ज़ा कर लिया था और तब से आस-पास के जलक्षेत्र में लगभग निरंतर तटरक्षक बल की मौजूदगी बनाए रखी है। 

चीनी सरकार द्वारा जारी किए गए मानचित्र में एटोल के पूरे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को रिजर्व के रूप में नामित किया गया है, जिसमें एक ‘कोर ज़ोन’ है जिसके दोनों ओर दो ‘प्रायोगिक ज़ोन’ हैं। चीनी कानून के तहत, कोर ज़ोन पूरी तरह से प्रतिबंधित है, जबकि प्रायोगिक ज़ोन में वैज्ञानिक अनुसंधान, शैक्षिक गतिविधियों और पर्यटन की अनुमति है। कोर ज़ोन में निर्माण कार्य प्रतिबंधित है, लेकिन प्रायोगिक ज़ोन में इसकी अनुमति है। विदेशियों को किसी भी रिज़र्व में प्रवेश करने के लिए चीनी अधिकारियों से अनुमति लेनी होगी।

‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर साउथ चाइना सी स्टडीज़’ के एक शोधकर्ता डिंग डुओ ने सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स को बताया कि नेचर रिज़र्व स्थापित करने का निर्णय उन आरोपों का ‘कड़ा खंडन’ जिसमें कहा गया है कि कि चीन ने दक्षिण चीन सागर के समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है। ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ (सीएसआईएस) की 2023 की एक रिपोर्ट कहती है कि चीन ने कृत्रिम द्वीप बनाने के लिए ‘ड्रेजिंग और लैंडफिल’ के ज़रिए लगभग 4,648 एकड़ रीफ को दफना दिया है। इसके अलावा रिपोर्ट यह भी कहती है कि चीन द्वारा विशाल क्लैम की कटाई से अनुमानित 16,353 एकड़ प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचा है।

चीन की गहराती चिंता के हैं अनेक कारण

बीजिंग, पूरे दक्षिण चीन सागर को अपना संप्रभु क्षेत्र मानता है। इस को लेकर चीन की गहरी चिंता सिर्फ़ भूगोल से ही नहीं, बल्कि सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, इतिहास और भू-राजनीति कारणों से भी जुड़ी है। भू-रणनीतिक महत्व समुद्री मार्ग और व्यापारिक दृष्टि से दक्षिण चीन सागर दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री व्यापार मार्गों में से एक है। हर साल 3.5-4 ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा मूल्य का माल यहाँ से होकर गुजरता है, जिसमें मध्य पूर्व से चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य जगहों तक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्ति शामिल है। चीन के लिए, यहाँ सुरक्षित मार्ग उसकी निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है। बीजिंग जानता है कि सैन्य और सुरक्षा बफर नजरिए से दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण रखने वाले को ही पूर्वी एशिया में रणनीतिक लाभ मिलेगा। फिर चीन इस क्षेत्र को अमेरिकी सैन्य उपस्थिति (जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, गुआम में अड्डे) के विरुद्ध एक रणनीतिक ढाल के रूप में देखता है। सैन्य सुविधाओं वाले कृत्रिम द्वीपों का निर्माण बीजिंग को अपनी ‘प्रथम द्वीप श्रृंखला’ रक्षा पंक्ति का विस्तार करने और अमेरिकी नौसेना को अपने तट से दूर धकेलने में मदद करता है।

अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन का अनुमान है कि दक्षिणी चीन सागर में 11 अरब बैरल तेल और 190 ट्रिलियन घन फीट प्राकृतिक गैस हो सकती है। चीन, जो आयातित ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भर है, इन संसाधनों को दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानता है। यह क्षेत्र वैश्विक मछली उत्पादन का 12 प्रतिशत प्रदान करता है, जिससे एशिया भर में लाखों लोगों का पेट भरता है। चीन को घरेलू स्तर पर अत्यधिक मछली पकड़ने के दबाव का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए दक्षिणी चीन सागर में मछली पकड़ने के क्षेत्रों को सुरक्षित करना खाद्य सुरक्षा और तटीय आबादी की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है।

ऐतिहासिक और संप्रभुता के नौ-बिंदु रेखा दावे पर गौर करे तो चीन गणराज्य (1947) के नक्शों के आधार पर, चीन दक्षिण चीन सागर के लगभग 90: हिस्से पर संप्रभुता का दावा करता है। बीजिंग का दावा है कि मछली पकड़ने, व्यापार और नौसैनिक अभियानों के ज़रिए उसके ‘ऐतिहासिक अधिकार’ हैं। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में संप्रभुता की रक्षा ‘अपमान की सदी’ (जब विदेशी शक्तियों ने चीन को विभाजित किया था) की कहानी से भी जुड़ी है। कम्युनिस्ट पार्टी दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण को चीन के सही स्थान की बहाली के रूप में प्रस्तुत करती है, जिससे घरेलू राष्ट्रवाद और राजनीतिक वैधता को बढ़ावा मिलता है।

भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अमेरिका और सहयोगियों की भागीदारी की ओर से भी चीन ऑंख मूंद के नहीं बैठना चाहता। वह जानता है कि उसके व्यापक दावों को चुनौती देने के लिए अमेरिका नौवहन स्वतंत्रता अभियान चलाता है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश -वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई- चीन के नियंत्रण का विरोध करते हैं। चीन इन कार्रवाइयों को अपने उदय को रोकने और महत्वपूर्ण समुद्रों तक अपनी पहुँच को सीमित करने के प्रयासों के रूप में देखता है।

इसके अतिरिक्त बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) लिंक दक्षिण चीन सागर चीन की मुख्य भूमि और उसके व्यापार मार्गों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाता है। इस क्षेत्र की सुरक्षा संसाधनों और व्यापार के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करती है। दावों को लागू करने के लिए पीएलए नौसेना और तटरक्षक बल की उपस्थिति को मज़बूत करना भी आवश्यक है। बिना किसी खुले संघर्ष के प्रतिद्वंद्वी दावेदारों पर दबाव बनाने के लिए समुद्री मिलिशिया (सैन्य समर्थन वाली मछली पकड़ने वाली नावें) का उपयोग करने के अलावा सैन्य आधुनिकीकरण में निवेश करना उसकी जरूरत है।

चीन बढ़ा रहा अपने प्रतिद्धिदयों का रक्तचाप

दक्षिण चीन सागर, व्यापार और ऊर्जा के लिए एक रणनीतिक जीवनरेखा, संसाधनों का एक संभावित भंडार, और संप्रभुता एवं राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के अलावा, अमेरिकी प्रभाव के विरुद्ध एक सैन्य बफर ज़ोन और एक वैश्विक शक्ति के रूप में चीन की महत्वाकांक्षाओं का परीक्षण स्थल भी है। पिछले साढ़े तीन वर्षों में, चीन ने फिलीपींस के मामले और कार्यवाही की वैधता को बदनाम करने के लिए संसाधन और ऊर्जा खर्च की है, यह तर्क देते हुए कि वह “न तो मध्यस्थता को स्वीकार करेगा और न ही इसमें भाग लेगा।“

समुद्र पर संप्रभुता के चीन के व्यापक दावों और समुद्र में अनुमानित 11 अरब बैरल अप्रयुक्त तेल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस ने प्रतिस्पर्धी दावेदारों ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम को नाराज़ कर दिया है। 1970 के दशक की शुरुआत में ही, देशों ने दक्षिण चीन सागर में द्वीपों और विभिन्न क्षेत्रों, जैसे स्प्रैटली द्वीप समूह, पर दावा करना शुरू कर दिया था, जहाँ समृद्ध प्राकृतिक संसाधन और मछली पकड़ने के क्षेत्र हैं। 2014 के बाद से, चीन ने विवादित स्प्रैटली और पैरासेल द्वीप समूह में अपनी चौकियों पर दोहरे नागरिक-सैन्य ठिकानों के निर्माण के ज़रिए पूरे दक्षिण चीन सागर पर  निगरानी और शक्ति प्रक्षेपण की अपनी क्षमताओं में काफी इजाफा कर लिया है। इनमें नए रडार और संचार प्रणालियाँ, लड़ाकू विमानों के लिए हवाई पट्टियाँ और हैंगर, और सतह से हवा में मार करने वाली और जहाज-रोधी क्रूज मिसाइल प्रणालियों की तैनाती शामिल है। विश्लेषकों का अनुमान है कि जैसे-जैसे चीन की सेना आधुनिक हो रही है, दक्षिण चीन सागर में उसके सैन्य अभ्यासों और क्षमताओं में भी लगातार वृद्धि होगी। दिलचस्प बात यह रही है कि पीएलए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने एक से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है। ख़ास तौर पर, ऐसा लगता है कि चीनी सेना जानबूझकर, और शायद बढ़ा-चढ़ाकर, अपनी क्षमताओं और गतिविधियों का इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कर रही है।

क्या कहता है संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन 

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन के तहत, ‘ऐसी चट्टानें जो मानव निवास या आर्थिक जीवन को अपने आप में बनाए नहीं रख सकतीं, उनके लिए कोई विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र या महाद्वीपीय शेल्फ नहीं होना चाहिए।‘ न्यायाधिकरण ने निष्कर्ष के अनुसार,दक्षिण चीन सागर के जल में चीन द्वारा ऐतिहासिक नौवहन और मछली पकड़ना ऐतिहासिक अधिकार के बजाय उच्च समुद्री स्वतंत्रता का प्रयोग दर्शाता है, और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चीन ने ऐतिहासिक रूप से दक्षिण चीन सागर के जल पर विशेष नियंत्रण किया या अन्य राज्यों को अपने संसाधनों का दोहन करने से रोका था। लेकिन उनका यह भी मानना है कि चीन के पास ‘नाइन-डैश लाइन’ के अंतर्गत आने वाले समुद्री क्षेत्रों के संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकार का दावा करने का भी कोई कानूनी आधार नहीं।

न्यायाधिकरण ने पाया कि चीन ने फिलीपींस के मछली पकड़ने और पेट्रोलियम अन्वेषण में हस्तक्षेप करके और कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करके फिलीपींस के अपने विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन किया है। उसने यह भी माना कि चीन ने स्कारबोरो शोल में पहुँच को प्रतिबंधित करके फिलीपींस के मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है।

न्यायाधिकरण के अनुसार, चीनी कानून प्रवर्तन जहाजों ने फिलीपींस के जहाजों को शारीरिक रूप से बाधित करके अवैध रूप से टकराव का गंभीर खतरा पैदा किया था। न्यायाधिकरण ने पाया कि स्प्रैटली द्वीप समूह में सात विशेषताओं पर चीन द्वारा हाल ही में बड़े पैमाने पर भूमि पुनर्ग्रहण और कृत्रिम द्वीपों के निर्माण से प्रवाल भित्तियों के पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचा है। हालाँकि, विवाद समाधान कार्यवाही के दौरान न्यायाधिकरण ने पाया कि चीन का हाल ही में बड़े पैमाने पर भूमि पुनर्ग्रहण और कृत्रिम द्वीपों का निर्माण किसी राज्य के दायित्वों के अनुरूप नहीं था।

निष्कर्ष

घरेलू राजनीतिक नजरिए, से देखा जा, तो दक्षिण चीन सागर में किसी भी तरह की गतिविधि को अपनी संप्रभुता में दखलदांजी और चीनी राष्ट्रवाद पर आधात के रूप में देखता है और फिर कम्युनिस्ट पार्टी क्षेत्रीय अखंडता के मामले में ‘कमज़ोर’ दिखने का जोखिम नहीं उठा सकती, खासकर शी जिनपिंग के नेतृत्व में, जहाँ ‘चीनी स्वप्न’ और ‘चीनी राष्ट्र का महान कायाकल्प’ जैसे नारे राजनीतिक विमर्श पर हावी हो। लेकिन फिर भी किसी भी राष्ट को यह नही भूलना चाहिए कि विवादों को कूटनीतिक रूप से हल करने में विफलता, समुद्री विवादों को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को कमजोर कर सकती है और हथियारों के जमावड़े को बढ़ावा दे सकती है।

Author

Mrs. Rekha Pankaj is a senior Hindi Journalist with over 38 years of experience. Over the course of her career, she has been the Editor-in-Chief of Newstimes and been an Editor at newspapers like Vishwa Varta, Business Link, Shree Times, Lokmat and Infinite News. Early in her career, she worked at Swatantra Bharat of the Pioneer Group and The Times of India's Sandhya Samachar. During 1992-1996, she covered seven sessions of the Lok Sabha as a Principle Correspondent. She maintains a blog, Kaalkhand, on which she publishes her independent takes on domestic and foreign politics from an Indian lens.

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