This piece was originally written in English. Read it here. It has been translated to Hindi by Rekha Pankaj.
तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के महासचिव शी जिनपिंग की तिब्बत की ऐतिहासिक यात्रा, पार्टी द्वारा एकता और शक्ति का एक सुनियोजित प्रदर्शन था। इसके स्वरूप, समय और महत्व से पता चलता है कि पार्टी तिब्बत के लिए अपने दृष्टिकोण को सुदृढ़ और त्वरित रूप से लागू करना चाहती है, खासकर 14वें दलाई लामा के अपने पुनर्जन्म संबंधी वक्तव्य के नजरिए से। ल्हासा की यात्रा करने वाले उच्च-स्तरीय केंद्रीय नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बत के शासन को आकार देने वाले प्रेरकों और रूपरेखाओं को जिन प्वाइंटस में रेखांकित किया उनमें राजनीतिक स्थिरता, क्षेत्रीय विकास और पार्टी नियंत्रण सुनिश्चित करना प्रमुख है। लेकिन घरेलू शासन पर ध्यान केन्द्रित होने से कहानी का आधा भाग ही सामने आता है।
टीएआर की यह यात्रा चीन के बाहरी संबंधों के साथ-साथ घरेलू राजनीतिक प्राथमिकताओं को भी लेकर थी। यह यात्रा, ठीक ऐसे समय में हुई है जब विदेश मंत्री वांग यी भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करने के लिए नई दिल्ली में थे, यह संदेश देती है कि चीन की सुरक्षा संबंधी सोच में तिब्बत की केन्द्रीयता है, तथा इससे भारत-चीन संबंधों की स्थिरता का भी पता चलता है। घरेलू राजनीतिक प्राथमिकताओं के साथ-साथ विकसित हो रही बाह्य गतिशीलता के साथ, चीनी नेता की इस तिब्बत यात्रा को एक तीखा अनुस्मारक भी कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी है जबकि तिब्बत क्षेत्र की घरेलू राजनीतिक और विकासात्मक प्रगति भारत की सुरक्षा के लिए अत्यधिक प्रासंगिक बनी हुई है और यह भारत और चीन के बीच सुरक्षा और रणनीतिक जुड़ाव के केंद्र में है। पार्टी द्वारा स्थिरता और सीमा सुरक्षा पर जोर दिए जाने तथा मेडोंग काउंटी बांध जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से निचले राज्यों की तटवर्ती सुरक्षा को खतरा होने के कारण, भारत के लिए टीएआर के आंतरिक घटनाक्रम और गतिशीलता के प्रति अधिक सतर्क रहने की संभावना है।
सख्त होती नीतियों के बीच शक्ति प्रदर्शन
पार्टी का टार का दौरा इसलिए ख़ास है क्योंकि यह पहली बार था जब सीपीसी के किसी महासचिव ने इस तरह के किसी आयोजन में शिरकत की। इससे पहले, 2015 में टीएआर में वर्षगांठ समारोह में सर्वाेच्च रैंकिंग वाले नेता सीपीपीसीसी की राष्ट्रीय समिति के तत्कालीन अध्यक्ष यू झेंगशेंग थे। समारोह में शी जिनपिंग की उपस्थिति ने टीएआर की राजनीतिक प्रोफ़ाइल को बढ़ा दिया है, और इसकी राजनीतिक और सुरक्षा स्थिति अब उनकी छवि के साथ अधिक निकटता से जुड़ी हुई है।
महासचिव के साथ उच्च-स्तरीय नेताओं का एक बड़ा दल था, जो नीतिगत कार्रवाई के केंद्रीकरण को मजबूत करने और चीन के बाहरी और आंतरिक उद्देश्यों के लिए टीएआर के महत्व को दर्शाने की इच्छा को दर्शाता है। प्रतिनिधिमंडल में 2 स्थायी समिति और 5 पोलित ब्यूरो सदस्य शामिल थे; वांग हुनिंग, काई क्यूई, झांग गुओकिंग, हे लिफेंग और ली गंजी, साथ ही वांग शियाओहोंग, हू चुनहुआ और झांग शेंगमिन। प्रतिनिधिमंडल के भाषणों और दौरों ने टीएआर के लिए पार्टी की शासन प्राथमिकताओं जैसे स्थिरता सुनिश्चित करना, विकास में तेज़ी लाना और पार्टी का प्रभुत्व बनाए रखना पर ज़ोर दिया।
उच्च स्तरीय नेताओं द्वारा स्थिरता पर ध्यान केन्द्रित करना 60वीं वर्षगांठ समारोह की निर्णायक नीतिगत प्राथमिकता थी। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि बीजिंग दूर-दराज के प्रांतों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, जहाँ जातीय समूह बहुसंख्यक आबादी हैं। शी जिनपिंग की टिप्पणी कि, “तिब्बत पर शासन करने, उसे स्थिर करने और विकसित करने के लिए मुख्य रूप से तिब्बत में राजनीतिक स्थिरता, सामाजिक स्थिरता, जातीय एकता और धार्मिक सद्भाव बनाए रखना आवश्यक है”, यह स्पष्ट करता है कि तिब्बत में स्थिरता अन्य सभी उद्देश्यों से अधिक महत्वपूर्ण है। झांग गुओकिंग ने कहा कि सशस्त्र बलों और सुरक्षा बुनियादी ढांचे की बड़ी उपस्थिति के माध्यम से इसे बनाए रखा जाता है, उन्होंने कहा, ‘तिब्बत में तैनात राजनीतिक और कानूनी टीमें राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने में महत्वपूर्ण ताकत हैं।‘ स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर ज़ोर शायद किसी भी संभावित आंतरिक या बाहरी व्यवधान को रोकने की एक प्रतिक्रिया है।
स्थिरता में तिब्बतियों को चीनी समाजवाद के साथ एकीकृत करने की नीतियों पर अधिक ध्यान देना भी शामिल था, यह प्रक्रिया एक दशक से भी अधिक समय से चल रही है। शी जिनपिंग द्वारा मानक लिखित और बोली जाने वाली चीनी भाषा को बढ़ावा देने के आह्वान के साथ, ’जातीय एकता’ के नाम पर नीतिगत निर्णयों में तेज़ी आने की संभावना है। इसके अलावा, पार्टी नेताओं द्वारा जारी निर्देशों के बाद हान चीनियों का तिब्बत में प्रवास, जनसंख्या केंद्रों का शहरीकरण, देश भर से पार्टी कार्यकर्ताओं की तिब्बत में तैनाती और पार्टी विचारधारा के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म को समायोजित करने जैसी प्रवृत्तियां संभवतः तीव्र हो जाएंगी।
क्षेत्रीय विकास भी तीव्र और विस्तारित होने वाला है, जैसा कि वांग हुनिंग के भाषण में जारी एक निर्देश में कहा गया है, ’तिब्बत का आधुनिकीकरण अभियान भी एक नए ऐतिहासिक प्रस्थान बिंदु पर है।‘ यद्यपि तिब्बत के विकास में रेल लाइनों और जलविद्युत परियोजनाओं जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर असमान रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है, फिर भी पार्टी नेताओं ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया है। इसके अलावा, तिब्बत के घरेलू विकास पथ का अब व्यापक, बाह्य प्रभाव पड़ने वाला है। उदाहरण के लिए, शी जिनपिंग ने स्थानीय सरकारी नेताओं से तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो के निचले इलाकों में जलविद्युत बांधों जैसी बड़ी परियोजनाओं में तेज़ी लाने को कहा, जो परोक्ष रूप से मेदोंग काउंटी बांध का संदर्भ था, जिसे चीन की सदी की परियोजना कहा जाता है। यह बांध भारत-चीन संबंधों में एक प्रमुख विवाद बिंदु के रूप में उभर रहा है और यह भारत-चीन सामरिक और सुरक्षा संबंधों के लिए तिब्बत के घरेलू विकास पथ को तेजी से ध्यान में लाता है।
अंत में, तिब्बत में पार्टी की प्राथमिकताओं की एक अनकही लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण विशेषता केंद्रीकृत नियंत्रण से संबंधित है। पार्टी ने पिछले वर्ष भ्रष्टाचार के आरोप में टीएआर में कार्यरत अनेक उच्चस्तरीय तिब्बती और गैर-तिब्बती अधिकारियों तथा कई निचले स्तर के अधिकारियों को हटा दिया है। उदाहरण के लिए, एक तिब्बती और टीएआर के पूर्व गवर्नर, क्यू झाला को रिश्वत लेने और ’अंधविश्वासी गतिविधियों’ में भाग लेने के कारण पद से हटा दिया गया था, जो अधिकारियों के लिए प्रतिबंधित धार्मिक प्रथाओं का संदर्भ था। हटाए गए अधिकारियों की संख्या में तीव्र वृद्धि इस बात का संकेत है कि पार्टी टीएआर में शासन और प्रशासनिक तंत्र के और अधिक केंद्रीकरण की कोशिश कर रही है।
बाहरी संदर्भ
चीन की तिब्बत नीति की घरेलू शासन रूपरेखा आकर्षक है और पार्टी द्वारा पर्याप्त रूप से मुखरित की गई है, फिर भी ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि शी की टीएआर यात्रा के बाहरी नीति के संकेतक सतह के नीचे छुपे हैं। शी की यात्रा के समय पर गौर करने पर, यह भी स्पष्ट हो जाता है कि यह यात्रा ठीक उसी समय हुई जब वांग यी की भारत यात्रा संपन्न हुई थी और जो इस बात का संकेत देते है कि चीन के लिए तिब्बत की सुरक्षा, भारत-चीन सीमा समीकरण का एक अभिन्न अंग है। टीएआर का दौरा इस बात का संकेत है कि तिब्बत में चीन की सुरक्षा चिंताएं भारत-चीन सीमा विवाद के किसी भी समाधान से जुड़ी हो सकती हैं। वास्तव में, यात्रा के दौरान और 18वीं पार्टी कांग्रेस के बाद से, शी और उनके प्रतिनिधिमंडल ने नियमित रूप से टीएआर में “चार प्रमुख कार्यों” में से एक के रूप में सीमा सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया है। अपनी यात्रा के दौरान, शी ने तिब्बत में तैनात सैनिकों से मुलाकात की और कर्नल रैंक से ऊपर के अधिकारियों से मुलाकात की; उन्होंने न केवल घरेलू शासन के संदर्भ में बल्कि भारत के साथ चीन के बाहरी संबंधों में भी “राष्ट्रीय सुरक्षा अवरोधक” के रूप में तिब्बत की भूमिका पर जोर दिया।
यह यात्रा इस बात की भी पुष्टि करती है कि बीजिंग तिब्बत में अपनी ऐसी बढ़त बनाने की कोशिश कर रहा है जिससे उसे भारत के साथ शक्ति संतुलन और सीमा वार्ता में बढ़त मिल सके। 21 जुलाई को ली कियांग द्वारा की गई घोषणा कि मेडोंग काउंटी बांध का निर्माण शुरू होगा और अब शी जिनपिंग द्वारा इसके निर्माण में तेजी लाने के लिए दिए गए अप्रत्यक्ष निर्देश से यह लगभग तय हो गया है कि यह बांध भारत-चीन सुरक्षा गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाएगा। हो सकता है कि चीन भारत के साथ बातचीत के लिए सौदेबाजी की रणनीति बना रहा हो, लेकिन शीर्ष नेतृत्व की मंज़ूरी के साथ, भारत और चीन के बीच तटवर्ती संबंध अब और भी मज़बूत होने वाले हैं।
इसके अलावा, चीन का यह रुख कि मेडोंग काउंटी बांध और तिब्बत की विकास नीतियां उसका आंतरिक मामला है, और भी सख्त होने की संभावना है, क्योंकि भारत ऐसी परियोजनाओं पर आपत्ति जता रहा है। तिब्बत का विकास पथ और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भारत की सीमा सुरक्षा के लिए तेजी से प्रासंगिक होती जा रही हैं और चीन के साथ सुरक्षा प्रतिस्पर्धा में उलझी हुई हैं।
एक और बाहरी आयाम वाली संवेदनशीलता दलाई लामा के उत्तराधिकार का मुद्दा है। शी की टीएआर यात्रा और स्थिरता एवं सुरक्षा की बात दोहराना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बीजिंग दलाई लामा के उत्तराधिकार के मुद्दे को तिब्बत में चीन के नियंत्रण पर प्रभाव डालने की अनुमति देने को तैयार नहीं है। दलाई लामा द्वारा चीन के बाहर और चीन के प्रभाव से बाहर उत्तराधिकारी की घोषणा के ठीक एक महीने बाद टीएआर की एक हाई-प्रोफाइल यात्रा, बीजिंग द्वारा सख्त रुख का संकेत देती है; कि चीन तिब्बत में अपनी एकीकरण रणनीति पर कायम रहेगा और पार्टी द्वारा नियुक्त तिब्बती संस्थाओं को वैध बनाएगा। संभवतः शी की यात्रा टीएआर में चीन के जवाबी कदमों के लिए आधार तैयार कर रही है, जब दलाई लामा के उत्तराधिकार की प्रक्रिया शुरू होगी। भारत के लिए, इसका मतलब है कि चीन भी नई दिल्ली द्वारा दलाई लामा के उत्तराधिकार का समर्थन या उसे वैध ठहराने के फ़ैसले की तैयारी कर रहा है।
भविष्य का दृष्टिकोण
अक्टूबर 2024 से भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंध सामान्यीकरण की ओर बढ़ रहे हैं और वांग यी की दिल्ली की हालिया यात्रा के दौरान भारत और चीन ने एक जटिल सीमा प्रश्न को सुलझाने के लिए बातचीत और समझौते में अधिक कूटनीतिक निवेश किया है। हालाँकि, तिब्बत में हो रहे घटनाक्रम से भारत और चीन के सुरक्षा परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है। शी की टीएआर यात्रा इस बात की तीखी याद दिलाती है कि तिब्बत में घटनाक्रम भारत की सीमा सुरक्षा चिंताओं से निकटता से जुड़ा हुआ है; मेडोंग काउंटी बांध कुछ भारतीय राज्यों में ‘जल बम’ के बारे में महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा कर रहा है और इसके निर्माण से संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी दुविधाएं काफी बढ़ सकती हैं।
चीन के लिए, उत्तराधिकार के मुद्दे पर दलाई लामा की हालिया टिप्पणियों के परिणामस्वरूप संभवतः बीजिंग का रुख सख्त हो गया है और तिब्बत पर नियंत्रण की बात दोहराई गई है। यह उत्तराधिकार के परिणामों के लिए जमीन तैयार करने की दिशा में किसी भी पार्टी के कदम की भी व्याख्या करता है। पार्टी की घरेलू शासन प्राथमिकताएं और चीन के बाहरी संकेत, दोनों ही भारत और चीन के बीच सुरक्षा गतिशीलता की जटिलता में वृद्धि का संकेत दे रहे हैं।
Author
Rahul Karan Reddy
Rahul Karan Reddy is Senior Research Associate at Organisation for Research on China and Asia (ORCA). He works on domestic Chinese politics and trade, producing data-driven research in the form of reports, dashboards and digital media. He is the author of ‘Islands on the Rocks’, a monograph on the Senkaku/Diaoyu island dispute between China and Japan. He is the creator of the India-China Trade dashboard, the Chinese Provincial Development Indicators dashboard and co-lead for the project ‘Episodes of India-China Exchanges: Modern Bridges and Resonant Connections’. He is co-convenor of ORCA’s annual conference, the Global Conference on New Sinology (GCNS) and co-editor of ORCA’s daily newsletter, Conversations in Chinese Media (CiCM). He was previously a Research Analyst at the Chennai Center for China Studies (C3S), working on China’s foreign policy and domestic politics. His work has been published in The Diplomat, 9 Dash Line, East Asia Forum, ISDP & Tokyo Review, among others. He is also the Director of ORCA Consultancy.